एक सच्ची कहानी
आस्था रावत
यार इतने टाइम बाद कॉलेज फ्रेंड्स का मिलना वाउ
7 साल हो गए कॉलेज फेयरवेल।
सब व्यस्त थे अपनी लाइफ में एक बार फिर से मिलना बहुत अच्छा है।
और कोई हो न हो मोहित बहुत व्यस्त है अपनी लाइफ में
सचिन हंसता हुए बोला
टिया - नही यार सचिन मोहित को अपने बाप के बसे बसाए कारोबार मिल गए तो और क्या था उसका ऐम ऑनली शादी था। सो बिजी है अब। अपने बीवी बच्चों के साथ।
सचिन - टिया बात तो तूने सही कही हम जैसे टॉपरो का तो कोई भविष्य ही नही.
और टॉपर से याद आया गायत्री कहां हैं तूने बुलाया था न टिया उसे और जीजू को
टिया - हा सचिन आ रही थीं वो वैसे भी वो भी तो व्यस्त ही रहती है
राइटर जो है डॉ,गायत्री सक्सेना
नाम भी उसने अपना बिलकुल ही टिपिकल सा बना लिया है। यार ।
लो आ गई मिस गायत्री की कार
हे गायु हाउ आर यू
गायत्री - सचिन टिया कैसे हो यार तुम यार मिस यू यार
टिया - यार प्रोफोसर साहिबा आ ही गई
तू तो बात भी नहीं करती
टिया टाइम ही मिलता कॉलेज, घर फिर बुक्स में फसी रहती हूं।
और बता जीजू कैसे है उनको क्यों नहीं लाई यार
जीजू भी बिलकुल ठीक है
आए तो है वो
टिया - सच कहां हैं जीजू
इधर उधर क्या देख रही है मेरे दिल में है
दिखेंगे नही आसानी से।
गायू तू भी ना बड़ी शायर बनी फिर रही हैं ।
मुझे लगा जीजू आए है। बुलाया था
तू तो जीजू से मिलवा नही रही में तुझे तेरे जीजू से मिलवाती हूं।
गायत्री- ओ रियली किस की किस्मत फूट गई।
टिया ,- सचिन प्लीज कॉम ये मेरी बेस्ट फ्रेंड गायत्री
गायत्री सचिन माय फियोंसी
गायत्री -हेलो सचिन
हेलो
तुमसे मिलके अच्छा लगा फ्यूचर जीजू
तुम भी यार दोनो छुपे रूस्तम हो कॉलेज फ्रेंड्स एंड फ्यूचर कपल
सचिन हंसने लगता है
सचिन -हां यार गायत्री होते होते प्यार हो ही गया।
टिया है इतनी अच्छी।
टिया - चलो यार लेट हो जायेगा
पिक योर बैग्स चलते है कैंपिंग के लिए इन खतरनाक जंगलों में।
हा चलो
सचिन - गायू शादी के बाद तू बिलकुल बिजी हो गई यार
मतलब गरीब लोगों से बातचीत बंद।
पागल हो क्या क्या गरीब लगा रखा है । अच्छे खासे कंपनी के सी एस और गरीब
और दोस्ती गरीबी अमीरी को नही देखती
दोस्त दोस्त होते है।
टिया- और बता गायु आजकल क्या चल रहा है।
कुछ नही यार टिया दिनभर कॉलेज और बाकी टाइम लिखने में बीत जाता है।।
और जीजू
जीजू तो मुझ से भी ज्यादा व्यस्त रहते है ।
सचिन - गायत्री तुम तो बहुत सुंदर कहानियां लिखती हो तुम्हारी कहानियां पढ़ी मैंने
मुझे तो बिलीव नहीं हुआ ये हमारी वाली गायत्री है।
टैलेंटेड तो हो तुम।
कुछ नया लिखा तो सुनो ना इंटरेस्टिंग सा
सच में थैंक्स
सचिन- कुछ लिखा हो तो सुना दो रास्ता भी कट जायेगा।
हा लिखा तो है।
पर ध्यान से सुनना क्यूसेशन भी पूछूंगी
सचिन- हा यार जरूर
फ्री में एक बेहतर कहानी कौन छोड़ेगा सुनाओ सुनाओ।
कहानी अभी पूरी नही हुई पर जितनी लिखी है उतनी सुना देती हूं।
तो
कहानी शुरू है मिस्टर गौतम के शानदार घर से घर बड़ा था
वैसे तो दो लोग रहा करते थे।
पर सुनैना अकेली ही रहा करती थी
गौतम तो बस रात को आता और सुबह सुबह ऑफिस।
सुनैना शादी को दो साल हो गए थे।
गौतम तो ऑफिस में ही रहा करते थे।
सुनैना भी एक हाउसवाइफ थी।
पर उसके दिमाग में घूमने वाले जासूसी कीड़ा उसे पूरी तरह खा चुका था।
जासूसी सीरियल देखना, बुक्स पढ़ने की तो वो एडिक्ट थीं।
दोनो की मुलाकात भी लाइब्रेरी में ही हुई थी।
रोजाना की तरह घर का सारा काम निपटा के एक कोने में बैठकर वो नजाने कौन सी किताबे पढ़ रही थी।
पढ़ रही थी फुसफुसा रही थी।
"जब अचानक दरवाजा खुला तो लड़की ने अंदर झांका और कमरे में आ गई अंधेरे से कमरे में अचानक कोई उसका हाथ पकड़ लेता है वो चिल्लाती है हाथ झटकती है।
पर पकड़ से छूट नही पाती वो कुछ करती इसे पहले उसके सिर पर कुछ बहुत भारी चीज से इतनी जोर से वार हुआ की वो बौखला गई लगा जैसे सर के दो टुकड़े हो गए हो और बेतहसा वो जमीन पर गिर पड़ी। और साथ ही खूनी के हाथ से गिर पड़ा खून लगा कठोर 'रान' ( बकरी के पैर का कठोर मांस ) "
तभी एक तेज आवाज आती है किताब छोड़ कर उसने अलार्म घड़ी को को बंद किया जिसमे आठ बजे का अलार्म लगा हुआ था।
किताबो को पढ़ते हुए उनमें इतना खो जाना की कुछ न दिखाए दे
इसी से परेशान होकर हर काम के लिए अलार्म जरूरी था।
सुनैना- गौतम बस आते ही होंगे।
आज वैसे भी उसका मनपसंद खाना बना है लगा देती हूं पहुंचते ही होंगे।
डायनिंग टेबल को अच्छे से साफ कर के उस पर अच्छे से खाना लगाती हैं ।
ओहो ये ड्राय फ्रूट टेबल पर बस एक बार उन्होंने खाए और
तबियत कितनी खराब हो गई थी ।
वो ड्राई फ्रूट से भरा बर्तन उठा के डस्टबिन में डाल दिए।
"नुकसान देने वाली चीज को दूर रखने से अच्छा खत्म करना ही बेहतर है।"
कार के हॉर्न बजता है।
"लगता है आ गए।"
(खिड़की का पर्दा हटाते हुए सुनैना बाहर झांकती है।)
अंधेरा काला अंधेरा छाया हुआ था अंधेरे चीरते हुए जब कार की रोशनी घर के बाहर आ खड़ी हुई
और एक मुस्कान भी आ गईं सुनैना के मुख पर
अब रोशनी थी चारो ओर
कार दरवाजे के बाहर आ खड़ी हुई और कार के अंदर। से गौतम बाहर निकला साथ में एक लड़की भी थोड़ी देर बाते करने के बाद वो गले मिल कर वहां निकल गई।
सुनैना ये सब देख रही थी उसकी आंखो में नमी थी।
पर मानो
घाव शायद ताजा नही था। सब कुछ पहले से जानती थी वो
आंसुओ में दर्द था पर थोड़ा पुराना।
एक महीने से चल रहा था।
पहले स्वाभिमान था तो सोचती की सब कुछ छोड़ देगी।
पर जब दुनिया का ख्याल आया तो सब कुछ जान के मौन हो गई।
उसने अपनी नाम आंखे पोंछ डाली और चेहरे पर खुश्क मुस्कान सजा डाली
और गौतम के दरवाजे पर आते ही दरवाजा खोला और मुस्कराते चेहरे से उसका स्वागत किया।
मर्द मर्द होता उसका प्यार एक की सीमा में कहां टिकता है
इसकी जीती जागती मिसाल गौतम को सुनैना से भले ही कोई शिकायत नहीं थी।
पर हाथ आई लक्ष्मी को न नही करते उसका इसमें पूर्ण विश्वास था। चाहे लक्ष्मी धन हो या लक्ष्मी देवी।
गौतम अंदर आया जूते उतार कर कमरे में चला गया ।
सुनैना ने मेज से गौतम का बैग उठाया और उसे उस की जगह पर रख के दूसरा थैला उठाकर किचन में ले गई।
घर आते समय गौतम हमेशा घर का सामान ले कर आते थे।
सुनैना के मुख पर कोई भाव नहीं था जैसे बस एक कोई निर्जीव पुतला सा
किचन में उसने वो थैला रखा और उससे समान निकलकर
रख ही रही थी की
उसके चेहरे का रंग उड़ गया।
उसके हाथ से थैला नीचे गिर पड़ा
सुनैना-ये ये तो ...............
अगले भाग में....
आस्था रावत